देहरादून/रुड़की। हाल में हुए एक शोध के अनुसार, लगभग 50 प्रतिशत दिल के दौरे में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं और बाद में इलेक्ट्रो कार्डियोग्राम द्वारा इसका पता लगाया जाता है। भारत में हृदय रोगों और शुरुआत में उनके दिखाई देने वाले सूक्ष्म लक्षणों के बारे में जागरूकता की कमी है। यह समझने की जरूरत है कि हृदय रोगों का समय पर निदान जटिलताओं को टालने और उन्हें प्रबंधित करने के लिए महत्वपूर्ण है। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि छाती में दर्द, भारीपन, सांस फूलना, बांये हाथ में दर्द आदि ही हृदय रोगों का संकेत है लेकिन यह भी समझने की आवश्यकता है कि हर किसी को यही संकेत हृदय रोग से पहले मिलें, ये जरुरी नहीं।
इस बारे में बात करते हुए, हिमालयन हॉस्पिटल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अनुराग रावत ने कहा, “भारतीय आनुवंशिक रूप से हृदय रोगों के शिकार होते हैं। यहां तक कि एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाने वाले व्यक्ति जिसने कभी कोई हृदय संबंधी परेशानी का अनुभव न किया हो उसे भी नियमित जांच के जरिए हृदय में होने वाले ब्लॉकेज के बारे में पता चल सकता है। इसलिए जोखिम पैदा करने वाले कारकों के बारे में पता होना और समय पर स्वास्थ्य जांच करवाने के महत्व से अवगत होना बेहद महत्वपूर्ण है। 35 वर्ष से अधिक आयु वालों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। सांस की तकलीफ, अत्यधिक थकान, शरीर में तरल पदार्थ का ज्यादा निर्माण, लगातार खांसी या घरघराहट, भूख में कमी, मतली, भ्रम और हृदय गति में तेजी जैसे लक्षण दिखें तो सावधान हो जाएं।” डॉ. रावत ने कहा, “रोकथाम की शुरुआत प्रारंभिक चरण में होनी चाहिए। समय पर जाँच करवाना, आयु-उपयुक्त जाँच कराना और जोखिम पैदा करने वाले को समझना बेहद महत्वपूर्ण है। हालांकि परिवार का इतिहास भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता लेकिन बाकी कारकों की रोकथाम भी हमारे हाथ में ही है। महिलाओं को और ज्यादा सावधानी बरतने की जरुरत है क्योंकि उनमें समान लक्षण देखने को नहीं मिलते हैं। कुछ लोगों में दवाओं के माध्यम से हृदय रोगों का निदान संभव होता है लेकिन कुछ लोगों में जटिलताएं देखने को मिलती हैं तो एंजियोप्लास्टी या कोरोनरी बाईपास सर्जरी की आवश्यकता भी हो सकती है। एंजियोप्लास्टी में, एक लंबी, पतली ट्यूब (कैथेटर) को धमनी के संकुचित हिस्से में डाला जाता है। एक बिना फुलाए गुब्बारे के साथ एक तार फिर कैथेटर के माध्यम से संकरे क्षेत्र में पहुंचाया जाता है। फिर गुब्बारा फुलाया जाता है जो आर्टरी वॉल्स में हुए जमाव को दबाता है। एक स्टेंट अक्सर धमनी में छोड़ दिया जाता है। धमनियों को खुला रखने में मदद करने के लिए अधिकांश स्टेंट दवा रिलीज करते हैं। वहीं, बायपास सर्जरी में, सर्जन शरीर के दूसरे हिस्से का उपयोग करके ब्लॉक हुई कोरोनरी धमनियों को बायपास करने के लिए एक ग्राफ्ट बनाता है। इससे ब्लॉक हुई या सिकुड़ी हुई कोरोनरी धमनी के चारों ओर रक्तप्रवाह होने में मदद मिलती है।