देहरादून। प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तीनों इकाइयों देवभूमि विचार मंच उत्तराखंड, प्रज्ञा परिषद ब्रज और भारतीय प्रज्ञान परिषद मेरठ एवं ललित कला अकादमी लखनऊ, उत्तर प्रदेश तथा कुमाऊं विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में “युवा संवाद से समाधान” परिचर्चा की श्रंखला में चौथे कार्यक्रम “फिल्म उद्योग तथा उससे जुड़े क्षेत्रों में स्वरोजगार” पर एक राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध उपन्यासकार एवं पटकथा लेखिका सुश्री अद्वैत काला, तथा अतिथि वक्ता के रूप में सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक एवं पटकथा लेखक आकाशादित्य रहे । कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. राजेंद्र सिंह पुंडीर अध्यक्ष, राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ द्वारा की गई। संंरक्षक के रूप में पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रज्ञा प्रवाह के क्षेत्रीय संयोजक भगवती प्रसाद राघव उपस्थित रहे ।
आयोजन समिति में डॉ प्रवीण कुमार तिवारी, आदर्श कुमार चौधरी, डॉ गौरव राव, डॉ रामबाबू सिंह, शुभ गुप्ता, अनुराग विजय अग्रवाल , डॉ टीकाराम रहे।
मुख्य वक्ता के रूप में सुश्री अद्वैत काला ने युवाओं के लिए विशेषतः फिल्म उद्योग में लेखन की संभावनाओंं पर विस्तृत रूप से चर्चा की । उन्होंने बताया कि जब 11 वर्ष पहले उन्होंने लेखन आरंभ किया था, तब केवल तीन ही बड़े प्रकाशक थे। जबकि आज अनेकों प्रकाशक होने के साथ ही स्व-प्रकाशन (self-publishing) की भी सुविधा है । उन्होंने अमीश त्रिपाठी का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी उन की पहली पुस्तक को प्रकाशक तक नहीं मिल रहे थे ,जबकि आज वह एक सफल लेखक हैं। उन्होंने बताया कि किसी भी नए लेखक को अपनी कहानी को रजिस्टर या कापीराइट करवा कर ही किसी को भेजना चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार लोकल कहानियों को भी फिल्म इंडस्ट्री में उपयोग किया जा सकता है । उन्होंने चेतन भगत का उदाहरण देते हुए बताया कि किसी भी कहानी को उपन्यास के रूप में लिखें और इस प्रकार उसको लिखा जाए कि उसी पर मूवी भी बन सके। ऐसा कर दो प्रकार से धन अर्जित किया जा सकता है , और आजकल तो टीवी सीरियल ,वेब सीरीज , फिल्में सभी स्थान पर अवसर उपलब्ध है ।
सुश्री अद्वैत काला ने केरल के कन्नूर का जिक्र करते हुए कहा कि ISIS के विषय में तो सभी को पता है, लेकिन किस प्रकार वामपंथियों द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों की शरीर के अंग काटकर हत्या की जाती है , इसका चित्रण उनके द्वारा एक डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से किया गया था , जिसको राष्ट्रीय पत्रिका आउटलुक द्वारा भी प्रकाशित किया गया था ।
सुश्री अद्वैत काला ने कहा कि हमें दृढ़ होना चाहिए कि हमें बदलाव लाना है और फिर जीवन के उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखकर ही फिल्म इंडस्ट्री में पदार्पण करना चाहिए । युवाओं के बीच उन्होंने अपना ईमेल आईडी भी शेयर की और बताया कि जो भी युवा कहानी लेखन के क्षेत्र में आना चाहते हैं संपर्क कर सकते हैं।
मुख्य अतिथि आकाशादित्य लामा ने कहा कि फिल्म निर्माण के लिए सबसे पहले हमारे पास एक स्क्रिप्ट होनी चाहिए और स्क्रिप्ट के 3 मुख्य भाग हैं : कहानी , स्क्रीनप्ले और डायलॉग । आकाशादित्य जी द्वारा बताया गया कि जब कहीं शूटिंग की जाती है तो किस प्रकार स्थानीय जानकारी से युक्त लोगो की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया की वैनिटी वैन से लेकर लोकेशन बताने वाले, वहां के कल्चर को बताने वाले, परंपराओं को बताने वाले, कैमरामैन इत्यादि विभिन्न प्रकार की कला को जानने वाले लोग इसमें स्वरोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
उन्होंने बताया की लॉक डाउन का यह समय क्रिएटिव सोच रखने वालों के लिए बड़ा उपयुक्त समय है और अपनी ज्ञान वृद्धि के लिए हमें इस समय का सदुपयोग करना चाहिए । उन्होंने कहा कि वे स्वयं भी आजकल डॉक्टर बी आर अंबेडकर की एक पुस्तक को पढ़ रहे हैं और इस दौरान ही उनको यह जानकारी मिली कि डॉक्टर बी आर अंबेडकर तो प्रखर हिंदुत्ववादी नेता थे।
उन्होंने कहा कि फिल्म के क्षेत्र में रुचि रखने वालों को थिएटर में अपनी रुचि को जागृत करना चाहिए इसके साथ ही उन्होंने बताया कि आजकल तो सिर्फ लैपटॉप और एक छोटे कैमरे की मदद से आप फिल्म निर्माण की विभिन्न विधाओं का प्रयोग कर सकते हैं ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. राजेंद्र सिंह पुंडीर ने कहा कि युवा वह है जिसका हृदय व मस्तिष्क युवा है । उन्होंने कहा कि हमें चिंतन करना चाहिए कि देश के अंदर आकर अंग्रेजों ने ऐसा क्या कार्य किया कि मुगल जिस कला और साहित्य को 800 वर्ष में नष्ट न कर पाए, वह अंग्रेज 200 वर्षों में किस प्रकार नष्ट कर गए । उन्होंने कहा कि हमें 1947 में सिर्फ कुर्सी की स्वतंत्रता मिली, लेकिन मन, मस्तिष्क , कार्यक्रम वही अंग्रेजों वाले चलते रहे । उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा काले अंग्रेजों के हाथ और उच्च शिक्षा वामपंथियों के हाथ में पकड़ा दी गई और फिल्में हमने राष्ट्र विरोधियों को पकड़ा दी । उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति एवं परंपरा पर लगातार फिल्मों के माध्यम से हमले होते हैं। उन्होंने कहा कि आज फिल्म इंडस्ट्री को यह चिंतन करने की आवश्यकता है कि पिछले 70 वर्षों में फिल्म इंडस्ट्री ने राष्ट्र एवं समाज को क्या योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि उत्तरदायित्व अब युवाओं का है परंतु वरिष्ठजनों का भी यह दायित्व है कि वे युवा युवाओं को जागृत करें। उन्होंने कहा कि आज बॉलीवुड के अनेक कलाकार भारत से ही अकूत धन संपदा एकत्र करते हैं, परंतु उन्हें भारत में रहने से ही डर लगता है ।
इस अवसर परसंस्कार भारती के अखिल भारतीय महामंत्री अमीर चंद्र तथा क्षेत्र संयोजक देवेंद्र रावत,
प्रोफेसर दिनेश सकलानी, डॉ चैतन्य भंडारी , डॉक्टर सोनू द्विवेदी , डॉ अंजलि वर्मा, डॉ राजेश पालीवाल , डॉक्टर बबीता शर्मा ,आकांक्षा गुप्ता, अनुराग शर्मा ,डॉक्टर ऋचा कंबोज ,डॉक्टर दीपक पांडे , डॉ रवि शरण दीक्षित सहित बड़ी संख्या में युवा वर्ग और विद्वत जन इस युवा संवाद परिचर्चा की चतुर्थ श्रृंखला में भागीदार रहे।