24 Aug 2025, Sun

उत्तराखंड के साहित्यकारों का हिंदी साहित्य में अवदान विषय पर ई-संगोष्ठी का आयोजन

नैनीताल। अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड की नैनीताल इकाई के तत्वावधान में बुधवार की सायं ”उत्तराखंड के साहित्यकारों का हिंदी साहित्य में अवदान” विषय पर ई-संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम  सरस्वती वंदना के साथ शुरू किया गया।

 कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. राजेश्वर उनियाल, पूर्व सहायक निदेशक (राजभाषा) भारत सरकार ने प्राचीन काल, मध्यकाल व वर्तमान काल में उत्तराखंड के साहित्यकारों के हिंदी साहित्य में योगदान पर प्रकाश डालते हुए उत्तराखंड की बोलियों के साहित्य के विकास को संक्षिप्त रूप से प्रस्तुत किया।

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प्रमुख वक्ता डॉ. नरेंद्र कुमार सिंह, विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार द्वारा संक्षिप्त में सभी साहित्यकारों का परिचय देते हुए चंद्रकुंवर बड़थ्वाल जी के साहित्य पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि चंद्रकुंवर बड़थ्वाल जी की व्यंजना शक्ति में अद्भुत आकर्षण है और यह भी बताया कि उत्तराखंड ने पद्य साहित्य के साथ गद्य साहित्य को भी उतना ही पोषित किया है।

 संगोष्ठी में उपस्थित डॉ. याचना मैथाणी द्वारा हिमांशु जोशी और उनका साहित्य में अवदान पर चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि हिमांशु जोशी ने अपने साहित्य में सामाजिक समस्याओं को उठाने के साथ ही उनके निराकरण पर भी ध्यान दिया है।

कार्यक्रम की मुख्य संयोजक प्रो. चंद्रकला रावत अध्यक्ष हिंदी विभाग, डीएसबी परिसर, नैनीताल द्वारा सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए परिषद के गठन, संगोष्ठी के शीर्षक व उद्देश्यों पर चर्चा करते हुए कहा कि उत्तराखंड का अधिकांश भाग अति दुर्गम और दुरूह है लेकिन फिर भी, सुविधाविहीन इस क्षेत्र ने देश को ऐसी – ऐसी विभूतियां दी है,जिन्होंने हिन्दी साहित्य को उसी प्रकार पोषित व संवर्द्धित किया है जिस प्रकार यहाँ की नदियां सम्पूर्ण देश को सिंचित और पोषित करती है । उत्तराखंड की युवा पीढ़ी को अपनी इन क्षमताओं , उपलब्धियों को जानना अत्यावश्यक है ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तराखंड प्रांत के बौद्धिक प्रमुख डॉ. जसपाल खत्री ने साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी के आलोचनात्मक साहित्यिक पक्ष पर जानकारी प्रदान की गई। उन्होंने बताया कि समाज की सारी विशेषताएं मनोहर श्याम जोशी जी के साहित्य में झलकती हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सुनील पाठक प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा वैदिक व पौराणिक काल से ही उत्तराखंड के साहित्य में योगदान के विषय पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कालिदास के ग्रंथों व अभिज्ञानशाकुंतलम के जर्मनी अनुवाद के विषय में जानकारी प्रदान की।

उन्होंने बताया कि प्रमुख साहित्यकार इलाचंद्र जोशी के साथ-साथ उनके अग्रज डॉक्टर हेम चंद्र जोशी का भी हिंदी साहित्य में अप्रतिम योगदान रहा है उनको यदि हिंदी व्याकरण का महर्षि पाणिनि कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने डॉ. हेमचंद्र जोशी के ग्रंथों के विषय में जानकारी देते हुए उनके भाषाई वैज्ञानिक विश्लेषण को भी अद्भुत बताया। इसी तरह डॉ. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल का भाषाई वैज्ञानिक विश्लेषण बहुत गहन व गंभीर है यह भी जानकारी दी गई। डॉ. सुनील पाठक जी द्वारा उत्तराखंड के प्रमुख साहित्यकार रहे शैलेश मटियानी जी के साहित्य में किस तरह राष्ट्रीयता का पक्ष उभरता दिखाई देता है इस पर प्रकाश डाला गया। साथ ही उन्होंने चंद्रकुंवर बड़थ्वाल जी द्वारा रचित यात्रा वृत्तांत ‘केदारनाथ यात्रा’ के विषय में चर्चा की। उन्होंने बताया कि चंद्रकुंवर बड़थ्वाल जी के गद्य की भाषा काव्यात्मक भाषा रही है। अंत में संगोष्ठी के सह संयोजक श्री अरविंद कुमार मौर्य शोधार्थी , हिन्दी विभाग , कुमाऊँ विश्वविद्यालय के द्वारा उत्तराखंड के साहित्य में साहित्यकारों के योगदान के विषय में संक्षिप्त रूप में बताया गया तथा उन्होंने कहा कि आज शैलेश मटियानी जी का साहित्य नए मूल्यांकन की मांग करता है।

संगोष्ठी का समापन अमिता मिश्रा द्वारा राष्ट्रीय गीत के गायन से हुआ। संगोष्ठी के मध्य हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. नीरजा टंडन , प्रो. मानवेन्द्र पाठक व विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो. निर्मला ढैला बोरा , प्रो. शिरीष मौर्य , डॉ शुभा मटियानी , डॉ शशि पांडेय , सुश्री मेधा नैनवाल और विभाग के शोधार्थी समर यादव , चंद्रमा प्रसाद , धनंजय , जया बरनवाल व छात्र – छात्राएं उपस्थित रही। संगोष्ठी का संचालन रश्मि रस्तोगी व अरविन्द कुमार मौर्य द्वारा संयुक्त रूप से किया गया । किरन मौर्या द्वारा सरस्वती वंदना तथा सृष्टि गंगवार द्वारा परिषद गीत प्रस्तुुुत किया।

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