देहरादून। पहाड़ न सिर्फ नैसर्गिक सौंदर्य समेटे हैं बल्कि यहां प्रकृति ने रोगों से लड़ने के उपाय भी खूब दिए हैं। होने को हर साल पहाड़ में बुरांस के फूलों से औषधीय गुणों युक्त जूस तैयार किया जाता है। मगर इस बार लॉकडाउन के चलते कारोबार ठंडा पड़ा है। पहाड़ के जंगल बुरांस से जरूर ललिमा बिखेर रहे हैं मगर इस बार ह्दयरोग, उच्च रक्तचाप, दमा जैसी कई बीमारियों के लिए रामबाण माना जाने वाला बुरांस के जूस कम ही मिलेगा। कोरोना ने गर्मी में तैयार होने वाले पहाड़ के जूस कारोबार पर असर डाला है।
लॉकडाउन के चलते जंगलों से जूस के लिए बुरांस का फूल नहीं टूट सका है तो फैक्ट्रियों में तैयार माल भी दुकानों तक नहीं पहुंच पाया है। लॉकडाउन का असर सिर्फ बुरांस के जूस पर ही नहीं पड़ा है बल्कि सीजन के लिए तैयार नींबू, लीची, खुबानी, आंवला स्ट्बरी के जूस, जैम, चटनी, मुरब्बा समेत अन्य सामग्री फैक्ट्रियों में ही सील हो गई है। अब कारोबारियों को माल खराब होने से नुकसान होने की चिंता होने लगी है। पर्यटन सीजन के लिए कारोबारियों ने पूरा माल तैयार कर लिया था मगर अचानक लॉकडाउन से पूरी सामग्री दुकानों तक नहीं पहुंच सकी और अब तो खरीदार भी बाजार में नहीं हैं। पर्यटन कारोबार इस बार चलने की उम्मीद नहीं है और इस वजह से पहाड़ में आने वाले पर्यटकों के ये पहाड़ी उत्पाद खरीदने की संभावना भी नहीं के बराबर है। इस मामले मंे काश्तकारों का कहना है कि न बुरांस टूट सका, न ही फैक्ट्रियों में बना सामान रिटेल दुकानों तक पहुंच सका।
जो माल सीजन के लिए तैयार किया गया था वह भी खराब होने की स्थिति बन रही है और सरकार कह रही है कि फैक्ट्रिया उत्पादन करें। लेकिन न तो पर्यटक हैं, ना ही खरीदार। किसके लिए माल तैयार करें. अगर हालत ऐसी ही बनी रही तो कारोबारियों पर दोहरी मार पड़ेगी। भारत में लगभग 36 प्रजातियों का बुरांस होता है जो सामन्यतः 5 से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर होता है। उत्तराखण्ड में बुरांस से शर्बत तैयार किया जाता है जिसमें औषधीय गुण होते हैं। इसे ह्दयरोग, उच्च रक्तचाप, दमा जैसी बीमारियों के लिये फायदेमंद माना जाता है। इसके साथ ही पहाड़ में नींबू, लहसुन, अदरक, संतरा, खुबानी, आंवला, सेब, स्ट्रॉबरी, बेल समेत अन्य उत्पादों से स्क्वैश, जैम, चटनी, अचार, मुरब्बा आदि तैयार किया जाता है। पहाड़ में फ्रूड प्रोसेसिंग उघोग से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से हजारों लोग जुड़े हैं। कारोबारी सीमा कहती हैं कि बुरांस के फूल लाने के साथ फैक्ट्रियों तक काम करने वालों में हजारों लोग जुडे हैं और किसानों को भी सीधे फायदा मिलता है। मगर लॉकडाउन के बाद से ही रोजगार भी बंद है ऐसे में अगर हालात ठीक नहीं होते हैं तो पहाड़ के लोगों की आजीविका पर भी इसका असर पड़ेगा।